नीतीश कुमार ने आखिर “महिला संवाद यात्रा” क्यों टाल दी, अटकलें
नीतीश कुमार ने बिहार यात्रा रद्द तो नहीं की है, टाल जरूर दी है. और नाम भी बदल दिया है – क्या नीतीश कुमार ने ऐसा लालू यादव की टिप्पणी के कारण किया है, या फिर तेजस्वी यादव के दबाव के चलते?नीतीश कुमार ने अपनी बिहार यात्रा रद्द तो नहीं की, लेकिन हफ्ता भर टाल तो दिया ही है. और अचानक ही नाम भी बदल डाला है. ये सब क्यों हुआ, इसके कई कारण लगते हैं जिसमें एक तो बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का दबाव भी माना जा रहा है. 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव और हाल के महाराष्ट्र चुनाव में महिलाओं की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका देखी जा रही है. नीतीश कुमार का फोकस तो महिला वोटर पर बहुत पहले से रहा है, लेकिन अब तेजस्वी यादव को भी अहमियत समझ में आने लगी है.बिहार में लागू की गई शराबबंदी तो महिला वोट बैंक से जुड़ी सबसे बड़ी मिसाल है. चुनावों में महिलाओं की भूमिका की तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तारीफ कर चुके हैं. मोदी ने एक बार महिलाओं को साइलेंट वोटर करार दिया था – और बिहार में जातिगत गणना के बाद मोदी ने जो चार जातियां बताई थी, उनमें एक तो महिला ही है. महिला वोट बैंक को साधने के लिए ही नीतीश कुमार ने 15 दिसंबर से महिला संवाद यात्रा की घोषणा की थी, लेकिन विवाद होने पर टाल दिया. बिहार यात्रा पर तो वो निकल ही रहे हैं, लेकिन उसे नया नाम मिला है. 23 दिसंबर से नीतीश कुमार प्रगति यात्रा पर जाने वाले हैं. प्रगति यात्रा के दौरान वो विकास कार्यों की समीक्षा करेंगे, और महिला संवाद यात्रा में भी करीब करीब यही होना था. फिलहाल ये तो नहीं पता कि नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा आगे भी होगी या नहीं, लेकिन उसका कार्यक्रम बनेगा भी तो प्रगति यात्रा के बाद ही. महिला संवाद यात्रा को टाले जाने में नीतीश कुमार के मौजूदा कट्टर विरोधी लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव का ही हाथ लगता है. असल में, लालू यादव ने नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा पर बड़ा ही अजीब कटाक्ष किया था. और उसके बाद नीतीश कुमार के विधानसभा में उनके बयान को लेकर विरोधियों की तरफ से माहौल बनाया जाने लगा था. नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा को लेकर आरजेडी नेता लालू यादव ने कह दिया था कि वो महिला संवाद यात्रा के बहाने ‘आंख सेंकने’ जा रहे हैं. देसी लहजे में ये बड़ी ही छिछोरी हरकत मानी जाती है, जिसे सड़क छाप लफंगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जब पत्रकारों ने लालू यादव को नीतीश कुमार के बयान पर प्रतिक्रिया पूछी, तो लालू यादव का कहना था, ‘पहले आंख सेंकें न अपना… जा रहे है आंख सेंकने.’ नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी जीत तो एनडीए की ही होगी, और लालू यादव ने उसी बात पर इस रूप में प्रतिक्रिया जताई थी. लालू यादव की बात के बाद नीतीश कुमार इसलिए भी बचाव की मुद्रा में आ गये क्योंकि विधानसभा में उनका एक बयान याद दिलाया जाने लगा. नीतीश कुमार का वो बयान तभी का है जब वो महागठबंधन के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. तब तो तेजस्वी यादव से लेकर राबड़ी देवी तक ने नीतीश कुमार का जोरदार बचाव किया था, लेकिन अब उनके एनडीए में चले जाने के चलते लालू यादव और तेजस्वी यादव हमलावर हो गये हैं. हो सकता है नीतीश कुमार को लगा हो कि महिला संवाद यात्रा पर निकले तो और ज्यादा बवाल मचेगा, लिहाजा मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम बदल दिया है. प्रगति यात्रा में भी नीतीश कुमार चाहें तो जगह जगह महिलाओं से संवाद तो कर ही सकते हैं. क्या ये तेजस्वी यादव के दबाव का असर है?लालू यादव की टिप्पणी के बाद तेजस्वी यादव की एक घोषणा भी नीतीश कुमार के बैकफुट पर जाने की वजह लगती है. बिहार में विधानसभा के चुनाव तो अगले साल होने वाले हैं, लेकिन तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने की सूरत में करीब करीब वैसा ही वादा किया है जैसा 2020 के चुनाव में नौकरियों को लेकर किया था. तेजस्वी यादव अच्छी तरह समझ चुके हैं कि नीतीश कुमार को कमजोर करने के लिए महिला वोट बैंक में सेंध लगानी होगी. पिछले चुनाव में तेजस्वी यादव ने बिहार के युवाओं को 10 लाख नौकरियां देने का वादा किया था, और बाद में नीतीश कुमार के साथ सरकार में शामिल होने पर नौकरियां दी भी गई थीं. अब तेजस्वी यादव ने कहा है कि उनकी सरकार बनी तो वे बिहार में ‘माई-बहिन मान योजना’ लागू करेंगे. माई-बहिन मान योजना के तहत तेजस्वी यादव ने महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये की सम्मान राशि देने का वादा किया है. लगता है नीतीश कुमार महिलाओं के लिए कोई नया ऑफर लाने की सोच रहे हैं, और उसकी घोषणा के लिए सही समय का इंतजार कर रहे हों. वैसे नीतीश कुमार ने बिहार में महिला वोटर को ध्यान में रखकर कई स्कीम चलाई है, और उसका फायदा भी मिला है. मसलन, छात्राओं के लिए साइकिल, ड्रेस के लिए पैसे और अविवाहित लड़कियों के लिए प्रोत्साहन राशि सीधे उनके खाते में भेजते हैं. पंचायत और निकाय चुनावों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया, सरकारी नौकरियों में 35 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की है. और सबसे बड़ी बात, बिहार में शराबबंदी लागू किये जाने के पीछे भी महिला वोट बैंक ही है – और तमाम विवादों के बावजूद अब तक शराबबंदी वापस न लिये जाने की वजह भी महिला वोट बैंक ही है.