जाने आखिर किस मिट्टी से बनायी जाती है मां दुर्गा की प्रतिमा
शारदीय नवरात्री तीन अक्टूबर से शुरू हो चुकी है हर जगह पंडाल एवं मां दुर्गा की अत्यंत दिव्या मूर्ति बनायी गयी है. वही नौ दिन बाद यानी विजयादशमी के साथ इस पर्व का समापन होगा. शारदीय नवरात्रि के 9 दिन आदिशक्ति मां भगवती की पूजा के लिए समर्पित होते हैं. इसलिए इसे दुर्गा पूजा भी कहा जाता है.
दुर्गा पूजा के दौरान मंदिर, बड़े-बड़े पूजा पंडाल और घर-घर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है और पूरे 9 दिन भक्ति-भाव से पूजा की जाती है. कहा जाता है की इस दिन मां दुर्गा सक्चात पृथ्वी में आकर हमारे बिच रहती है. जिस प्रतिमा की इतनी तारीफ़ करते है वो जिस मिटटी से बनायीं जाती है, तो बता दे की इसमें वेश्याल के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है.
मान्यता है कि अगर मां दुर्गा की मूर्ति के लिए वेश्यालय के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल न किया जाए तो मूर्ति अधूरी मानी जाती है. इतना ही नहीं पुजारी या मूर्तिकार मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालय के द्वार मिट्टी मांगने जाते हैं, तो उसका मन साफ और सच्चा होना चाहिए. साथ ही सिर झुकाकर सम्मानपूर्वक वेश्या से मिट्टी मांगी जाती है. इसके बाद जब वेश्या अपने आंगन की मिट्टी देती है तब इससे मां दुर्गा की मूर्ति का निर्माण किया जाता है और मूर्ति पूर्ण मानी जाती है.
वेश्याओं के आगे सिर झुकाना इस बात का संदेश देता है कि नारी शक्ति के रूप में उन्हें भी समाज में बराबरी का दर्जा दिया गया. आइए पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास से जानते हैं आखिर क्या है वेश्यालय के आंगन की मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्ति बनाने का कारण.