नीतीश की यात्रा पर क्यों सवाल उठा रहे, क्या है इसकी वजह
पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 23 दिसंबर से ‘प्रगति यात्रा’ की शुरुआत करने वाले हैं, लेकिन इस यात्रा से पहले ही बिहार की राजनीति में उबाल आ गया है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सीएम की यात्रा को लेकर सवाल पूछे, तो सत्ता पक्ष ने तेजस्वी के अलविदा यात्रा वाले बयान पर उनकी आलोचना की. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जुबानी जंग, आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी तो राजनीति में जगजाहिर है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि नीतीश कुमार की यात्रा को लेकर बवाल आखिर क्यों मच गया है? क्या बिहार की राजनीति में पार्टियों का भविष्य अब यात्रा के जरिए तय होने लगा है, या इसके पीछे का कोई और अंदरूनी कारण भी है.
देखा जाए तो भले ही नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री रहते पिछले 19 साल में 14 यात्राएं की हों, लेकिन ऐसा करने वाले वो इकलौते नेता नहीं हैं. समय-समय पर दूसरी पार्टियों के नेता भी बिहार की यात्रा पर निकलते रहे हैं. हर चुनाव से पहले ऐसी एक दो यात्राएं देखने को मिल जाती हैं. तो, ऐसे में यह सवाल और भी बड़ा हो जाता है कि, क्या वाकई बिहार में चुनाव में इन यात्रा का महत्व इतना बढ़ गया है.
इसी साल तेजस्वी यादव ने की है बिहार की यात्रानीतीश कुमार की प्रगति यात्रा से पहले नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इसी साल 10 सितंबर से ‘आभार यात्रा’ की शुरुआत की थी. 10 और 11 सितंबर को समस्तीपुर से उन्होंने ये यात्रा की थी. इसके अलावा तेजस्वी यादव ने कार्यकर्ता सम्मेलन सह संवाद यात्रा के दौरान भी बिहार के सभी 243 विधानसभा का दौरा किया था.
इसके साथ ही इसी साल जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने भी बिहार की यात्रा समाप्त की. वह पिछले दो सालों से लगातार बिहार की यात्रा पर थे. इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी का ऐलान कर दिया. लेकिन, बिहार में लगातार हुए इन सभी यात्राओं पर किसी तरह का कोई राजनीतिक बवाल देखने को नहीं मिला. पर ऐसा क्या है, कि जैसे ही नीतीश कुमार ने यात्रा की घोषणा की तो पूरा विपक्ष उन्हें घेरने की कोशिश में लग गया.
नीतीश कुमार की यात्रा को लेकर क्यों हमलावर विपक्ष वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह बताते हैं कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई बड़े फैसले लिए हैं. जिसमें इन यात्राओं का भी एक बहुत बड़ा रोल है. अप्रैल 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी करने का निर्णय लिया था. जिसके बाद वह कई सभाओं में यह कह चुके हैं कि ऐसे ही किसी यात्रा के दौरान महिलाओं ने उनसे शराब बंद करने की बात कही थी, जिसके बाद उन्होंने यह निर्णय लिया था. ऐसे में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रगति यात्रा की घोषणा की तो विपक्ष नीतीश कुमार को बैकफुट पर लाने की कोशिश में जुट गया.
अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि इसके पीछे की एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है कि विपक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस यात्रा के दौरान होने वाली किसी बड़ी घोषणा या बड़े राजनीतिक निर्णय को लेकर पहले ही तैयार हो रहा है. ये भी एक कारण हो सकता है कि अभी से ही नीतीश कुमार को बैकफुट पर लाने के लिए ऐसी बयानबाजी हो रही है. इसकी झलक तेजस्वी यादव के उन 10 सवालों में भी देखने को मिली, जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा को लेकर उन्होंने पूछे हैं. इस यात्रा को तेजस्वी यादव ने आम लोगों के पैसे लूटने से लेकर बिहार के अधिकारियों पर तबादले का दबाव बनाने तथा अधिकारियों को लूट की खुली छूट देने तक से जोड़ दिया था.
नीतीश कुमार का स्ट्राइक रेट भी एक बड़ी वजहअरविंद कुमार सिंह ने आगे बताया कि इन यात्राओं के जरिए नीतीश कुमार ने पूरे बिहार की नब्ज़ पकड़ने की कोशिश की है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजनीति का एक बड़ा खिलाड़ी माना जाता है. फिर चाहे एनडीए और महागठबंधन के विधायक दल का नेता चुना जाना हो या यात्राओं के जरिए बिहार के लोगों का मिजाज भांपना हो, नीतीश कुमार के झंडाबरदार उन्हें बिहार की राजनीति का चाणक्य भी कहते हैं. और यह सच भी है, क्योंकि नीतीश कुमार अपनी यात्रा के दौरान हमेशा कुछ ऐसे ही नई चीज लेकर आते हैं जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलता है.
सीएम नीतीश की प्रगति यात्रा के क्या है मायने वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार सिन्हा आगे बताते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा के कई मायने हैं. अभी हाल ही में महाराष्ट्र में चुनाव हुए हैं और वहां भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों में से किसी को भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया. बल्कि देवेंद्र फडणवीस के नाम पर महाराष्ट्र में सहमति बनी. इसका असर कहीं ना कहीं बिहार की राजनीति में भी जरूर पड़ा है.
भले ही राजनीतिक दल मुंह खोलकर ऐसा नहीं कह रही हो पर राजेश कुमार सिन्हा का मानना है कि सभी पार्टियों के जेहन में यह बात जरूर है और खासकर जदयू इसे काफी गंभीरता से ले सकती है. इसके पीछे की एक बड़ी वजह यह भी है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए का चेहरा होंगे या नहीं इस पर भी स्थिति अभी तक साफ नहीं हो सकी है.
भले ही बिहार भाजपा के नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं, लेकिन बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने अभी तक इस पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है. जिस कारण भी नीतीश कुमार अपनी तरफ से तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.